अघोरकष्टोद्धारण स्तोत्र
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श्रीपाद श्रीवल्लभ त्वं सदैव श्री दत्तास्मान पाही देवाधिदेव |
भाव ग्राह्य क्लेश हारींसुकीर्ते घोरात्कष्टात्दुद्ध रास्मानमस्ते ||
त्वं नो माता त्वं पिताप्तो धीपस्तवं त्राता योग क्षेम कृत
सद्गुरूस्तवं |
त्वं सरस्वम् नो प्रभो विश्व मूर्ते घोरात्कष्टात्दुद्ध रास्मानमस्ते ||
पापं तापं व्याधीमाधीम च दैन्यम् भीतीम क्लेशम त्वं हराषुत्व दैन्यं |
त्रातरं नो विक्ष ईशास्त जूर्ते घोरात्कष्टात्दुद्ध रास्मानमस्ते ||
नान्यस्त्राता नापी दाता न भरता त्वत्तो देव त्वं शरण्यो काहर्ता |
कुर्वान्त्रेया नुग्रहम पूर्ण राते घोरात्कष्टात्दुद्ध रास्मानमस्ते ||
धर्मे प्रीतीम सन्मतीम् देव भक्तिं सद्संगाप्तीम् देही भुक्तिं च
मुक्तिं |
भावास्क्तीम् चाखिला नंद मूर्ते घोरात्कष्टात्दुद्ध रास्मानमस्ते ||
श्लोक पंचकमेतद्यो लोक मंगल वर्धनं प्रपठेन्निय्तो भक्त्या स् श्री
दत्त प्रियो भवेत |
इतिश्रीमद् परमहंस श्री वासुदेवानंद सरस्वती विरचितं अघोरकष्टोद्धारण
स्तोत्र संपूर्णम ||