श्रीमारुतिस्तोत्रम्
ॐ नमो वायुपुत्राय भीमरुपाय धीमते
नमस्ते रामदूताय कामरुपाय श्रीमते ।। 1।।
मोहशोकविनाशाय सीताशोकविनाशाय।
भग्नाशोकवनायास्तु(1) दग्धलंकाय वाग्मिने।।2।।
गतिनिर्जितवाताय(2) लक्ष्मणप्राणदाय च।
वनौकसां वरिष्ठाय(3) वशिने वनवासिने।। 3।।
तत्वज्ञानसुधासिंधुनिमग्नाय महीयसे।
आंजनेयाय शूराय सुग्रीवसचिवाय ते।। 4।।
जन्ममृत्युभयघ्नाय सर्वक्लेशहराय च।
नेदिष्ठाय प्रेत-भूत-पिशाचभयहारिणे।। 5।।
यातनानाशनायास्तु नमो मर्कटरुपिणे।
यक्ष-राक्षस-शार्दूल-सर्प-वृश्चिकभीह्यते।। 6।।
महाबलाय वीराय चिरंजिविन उध्दते।
हारिणे वज्रदेहाय चोल्लङिघतमहाब्धये।। 7।।
बलिनामग्रगण्याय नमो नः पाहि मारुते।।
लाभदोऽसि त्वमेवाशु हनुमन् राक्षसान्तक।। 8।।
यशो जयं च मे देहि शत्रून् नाशय नाशय।
स्वाश्रितानामभयदं य एवं स्तौति मारुतिम्।
हानिः कुतो भवेत्तस्य सर्वत्र विजयी भवेत्।। 9।।
।। श्रीमारुतिस्तोत्रं सम्पूर्णम्।।
(1)अशोकवाटिका को नष्ट करने वाले
(2)अपनी गति से वायु को पराजित करने वाले
(3)वानरों में श्रेष्ठ