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श्रीहरतालिकेची आरती

श्रीहरतालिकेची आरती

जय देवी हरतालिके। सखी पार्वती अंबिके।
आरती ओवाळीतें। ज्ञानदीपकळिके।। धृ०॥

हरिअर्धांगी वससी। जासी यज्ञा माहेरासी।।
तेथे अपमान पावसी। यज्ञकुंडी गुप्त होसी।।
जय देवी०॥ १॥

रिघसी हिमाद्रीच्या पोटी। कन्या होसी
तू गोमटी।
उग्र तपश्चर्या मोठी। आचरसी उठाउठी ।।।
जय देवी०|| २॥

तापपंचाग्निसाधनें। धूम्रपाने अधोवदने।
केली बहु उपोषणे। शंभु भ्रताराकारणें ।।।
जय देवी०॥ ३॥

लीला दाखविसी दृष्टी। हें व्रत करिसी
लोकांसाठी
पुन्हां वरिसी धूर्जटी। मज रक्षावें संकटीं।।
जय देवी०॥ ४॥

काय वर्ण तव गुण। अल्पमति नारायण।
माते दाखवीं चरण। चुकवावें जन्म मरण।।।
जय देवी०॥ ५॥

श्री स्वामी समर्थ आरती

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