🎆 कुञ्जिका स्तोत्रं 🎆
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे || ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा |
नमस्ते रूद्ररुपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि |
नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि || १ ||
नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिनि |
जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे |।२।।
ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका |
क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते |।३।।
चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी |
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मंत्ररूपिणि || ४ ||
धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी |
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु || ५ ||
हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी |
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः || ६ ||
अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा |।७।।
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा |
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मंत्र सिद्धं कुरुष्व मे || ८ |।
इदं तु कुञ्जिकास्तोत्रं मन्त्रजागर्ति हेतवे।
अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति।।
यस्तु कुञ्जिकया देवि।हीनां सप्तशतीं पठेत्।
न तस्य जायते सिध्दिररण्ये रोदनं यथा ।।
कुंजीका स्त्रोत वासतव मे सफलता की कुंजी हि है,सप्तशती का पाठ इसके बिना पूर्ण नहीं माना जाता है.षटकर्म में भी कुंजिका रामबाण कि तरह कार्य करता है.परन्तु जब तक इसकी ऊर्जा को स्वयं से जोङ न लीया जाए तबतक इसके पूर्ण प्रभाव कम हि दिख पाते है.आज हम यहा कुंजिका स्त्रोत को सिद्ध करने कि विधि तथा उसके अन्य प्रयोगो पर चर्चा करेंगे।सर्व प्रथम सिद्धि विधान पर चर्चा करते है.साधक किसी भी मंगलवार अथवा शुक्रवार से यह साधना आरम्भ करे.समय रात्रि १० के बाद का हो और ११.३० के बाद कर पाये तो और भि उत्तम होगा।लाल वस्त्र धारण कर लाल आसन पर पूर्व अथवा उत्तर कि और मुख कर बैठ जाये।सामने बाजोट पर लाल वस्त्र बिछा दे और उस पर माँ दुर्गा का चित्र स्थापित करे.अब माँ का सामान्य पूजन करे तेल अथवा घी का दीपक प्रज्वलित करे.किसी भी मिठाई को प्रसाद रूप मे अर्पित करे.और हाथ में जल लेकर संकल्प ले,कि माँ मे आज से सिद्ध कुञ्जिका स्तोत्र का अनुष्ठान आरम्भ कर रहा हु.में नित्य ९ दिनों तक ५१ पाठ करूँगा,माँ मेरी साधना को स्वीकार कर मुझे कुंजिका स्तोत्र कि सिद्धि प्रदान करे तथा इसकी ऊर्जा को मेरे भीतर स्थापित कर दे.जल भूमि पर छोड़ दे और साधक ५१ पाठ आरम्भ करे.इसी प्रकार साधक ९ दिनों तक यह अनुष्ठान करे.प्रसाद नित्य स्वयं खाए.इस प्रकार कुञ्जिका स्तोत्र साधाक के लिये पूर्ण रूप से जागृत तथा चैतन्य हो जाता है.फिर साधक इससे जुड़ी कोइ भि साधना सफलता पूर्वक कर सकता है.
कुंजिका स्तोत्र और कुछ अवश्यक नियम
१. साधना काल मे ब्रह्मचर्य क पलन करने आवशयक है.केवल देह से हि नहि अपितु मन से भी आवश्यक है.
२. साधक भूमि शयन कर पाये तो उत्तम होगा
३. कुंजिका स्तोत्र के समय मुख मे पान ऱखा जाएं तो ईससे माँ प्रसन्न होती है.इस पान मे चुना,कत्था और ईलायची के अतिरिक्त और कुछ ना ड़ाले।कई साधक सुपारी और लौंग भि डालतें है पर इतनी देर पान मुख मे रहेगा तो सुपाऱी से जिव्हा कट सकती है तथा लौंग अधिक समय मुख मे रहे तो छाले कर देति है.अतः ये दो वस्तु ना ड़ाले।
४ अगर नित्य कुंजिका स्तोत्र समाप्त करने के बाद एक अनार काटकर माँ को अर्पित किया जाये तो इससे साधना का प्रभाव और अधिक हो जाता है.परन्तु ये अनार साधक को नहीं ख़ाना चाहिए ये नित्य प्रातः गाय को दे देना चाहिए।
५. यदि आपका रात्रि मे कुंजिका का अनुष्टान चल रहा है तो नित्य प्रातः पूजन के समय किसी भि माला से ३ माला नवार्ण मंत्र की करे.इससे यदि साधना काल मे आपसे कोइ त्रुटि हो रही होंगी तो वो समाप्त हो जायेगी।वैसे ये आवश्यक अंग नहीं है फ़िर भी साधक चाहे तो कर सकते है.
६. साधना गोपनीय रखे गुरु तथा मार्गदर्शक के अतिरिक्त किसी अन्य को साधना समाप्त होने तक कुछ न बताए,ना हि साधना सामाप्त होने तक किसी से कोइ चर्चा करे.
७. जहा तक सम्भव हो साधना मे सभी वस्तुए लाल हि प्रयोग करे.