|| शिवाष्टक स्तोत्र ||
जय शिवशंकर, जय गंगाधर, करुणा-कर करतार
हरे,
जय कैलाशी, जय अविनाशी, सुखराशि,
सुख-सार हरे
जय शशि-शेखर, जय डमरू-धर जय-जय प्रेमागार
हरे,
जय त्रिपुरारी, जय मदहारी, अमित अनन्त अपार हरे,
निर्गुण जय जय, सगुण अनामय, निराकार साकार हरे।
पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि
दातार हरे॥
जय रामेश्वर, जय नागेश्वर वैद्यनाथ,
केदार हरे,
मल्लिकार्जुन, सोमनाथ, जय, महाकाल ओंकार हरे,
त्र्र्यम्बकेश्वर, जय घुश्मेश्वर भीमेश्वर
जगतार हरे,
काशी-पति, श्री विश्वनाथ जय मंगलमय अघहार हरे,
नील-कण्ठ जय, भूतनाथ जय, मृत्युंजय अविकार हरे।
पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि
दातार हरे॥
जय महेश जय जय भवेश, जय आदिदेव
महादेव विभो,
किस मुख से हे गुरातीत प्रभु! तव अपार गुण वर्णन हो,
जय भवकार, तारक, हारक पातक-दारक शिव
शम्भो,
दीन दु:ख हर सर्व सुखाकर, प्रेम सुधाधर
दया करो,
पार लगा दो भव सागर से, बनकर कर्णाधार
हरे।
पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि
दातार हरे॥
जय मन भावन, जय अति पावन, शोक नशावन,
विपद विदारन, अधम उबारन, सत्य सनातन शिव शम्भो,
सहज वचन हर जलज नयनवर धवल-वरन-तन शिव शम्भो,
मदन-कदन-कर पाप हरन-हर, चरन-मनन,
धन शिव शम्भो,
विवसन, विश्वरूप, प्रलयंकर, जग के मूलाधार हरे।
पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि
दातार हरे॥
भोलानाथ कृपालु दयामय, औढरदानी शिव
योगी,
सरल हृदय, अतिकरुणा सागर, अकथ-कहानी
शिव योगी,
निमिष में देते हैं, नवनिधि मन मानी
शिव योगी,
भक्तों पर सर्वस्व लुटाकर, बने मसानी शिव
योगी,
स्वयम् अकिंचन, जनमनरंजन पर शिव परम उदार
हरे।
पार्वती पति हर-हर शम्भो, पाहि पाहि
दातार हरे॥