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॥ तोटकाष्टकम् ॥

श्री ऋगवैदिय पूर्वाम्नाय गोवर्धनमठ पुरीपीठ के प्रथम श्रीमज्जगदगुरु शंकराचार्य श्री स्वामी पद्मपादाचार्य जी ने जगदगुरु आदि शंकराचार्य भगव‍न‍ा की स्तुति में " तोटकाष्टकम " स्तोत्र लिखा है जिसे " शंकर देशिकाष्टकम" स्तोत्र भी कहा जाता है । अत्यंत ही ललित , सौन्दर्य परिपूर्ण और मधुर स्तोत्र है ।

 

॥ तोटकाष्टकम् ॥

 

विदिताखिलशास्त्रसुधाजलधे

महितोपनिषत् कथितार्थनिधे ।

हृदये कलये विमलं चरणं

भव शंकर देशिक मे शरणम् ॥ १॥

 

करुणावरुणालय पालय मां

भवसागरदुःखविदूनहृदम् ।

रचयाखिलदर्शनतत्त्वविदं

भव शंकर देशिक मे शरणम् ॥ २॥

 

भवता जनता सुहिता भविता

निजबोधविचारण चारुमते ।

कलयेश्वरजीवविवेकविदं

भव शंकर देशिक मे शरणम् ॥ ३॥

 

भव एव भवानिति मे नितरां

समजायत चेतसि कौतुकिता ।

मम वारय मोहमहाजलधिं

भव शंकर देशिक मे शरणम् ॥ ४॥

 

सुकृतेऽधिकृते बहुधा भवतो

भविता समदर्शनलालसता ।

अतिदीनमिमं परिपालय मां

भव शंकर देशिक मे शरणम् ॥ ५॥

 

जगतीमवितुं कलिताकृतयो

विचरन्ति महामहसश्छलतः ।

अहिमांशुरिवात्र विभासि गुरो

भव शंकर देशिक मे शरणम् ॥ ६॥

 

गुरुपुंगव पुंगवकेतन ते

समतामयतां नहि कोऽपि सुधीः ।

शरणागतवत्सल तत्त्वनिधे

भव शंकर देशिक मे शरणम् ॥ ७॥

 

विदिता न मया विशदैककला

न च किंचन काञ्चनमस्ति गुरो ।

द्रुतमेव विधेहि कृपां सहजां

भव शंकर देशिक मे शरणम् ॥ ८॥

 

इति श्रीमत्तोटकाचार्यविरचितं

श्रीशङ्करदेशिकाष्टकं सम्पूर्णम् ।

 

गुरु पूर्णिमा के पावन पर्व की आप सभी को बहुत बहुत शुभकामनाऐं ।

 

हर हर महादेव , हर हर शंकर जय जय शंकर , जय श्री जगन्नाथ ।

 


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